कुटीर एवं लघु उधोगों में महिला उधमिता: रोजगार सृजन एवं महिला सशक्तिकरण पर प्रभाव
शीलु कुमारी
भारत के विकास में महिलाओं की समान भागीदारी की आवश्यकता को एक लंबे अरसे से महसूस किया जा रहा है। समानता का आधार आर्थिक और सामाजिक दोनों का होना अनिवार्य है। गहराई से देखने पर ही इस बात को समझा जा सकता है कि देश को समृद्ध बनाने के लिए महिलाओं को दोनों ही स्तरों यानी कि आर्थिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त करना होगा। अधिकांशतः महिलाओं से पक्षपात को आर्थिक या स्त्री-पुरूष के पारस्परिक संबंधों से जोड़कर देखा जाता है। वास्तव में तो लैंगिक भेदभाव एक ऐसा विषय है, जिसमें सोचे-समझे ढंग से ऐसी व्यवस्था निर्मित की जाती है, जिससे महिलाओं को अलग, वंचित और हाशिए पर रखा जा सके। उद्यमियों के रूप में महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति के कारण देश में महत्वपूर्ण व्यवसाय और आर्थिक विकास हुआ है। देश में रोजगार के अवसर पैदा करके, जनसांख्यिकीय परिवर्तन लाकर और महिला संस्थापकों की अगली पीढ़ी को प्रेरित करके महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसाय उद्यम समाज में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। देश में संतुलित विकास के लिए महिला उद्यमियों के सतत विकास को बढ़ावा देने की दृष्टि से, स्टार्टअप इंडिया भारत में पहलों, योजनाओं, नेटवर्क और समुदायों को सक्षम बनाने और स्टार्टअप इकोसिस्टम में विविध हितधारकों के बीच भागीदारी को सक्रिय करने के माध्यम से महिला उद्यमिता को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना रोजगार सृजन और नवाचार के एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखा जा रहा है, तथा आय असमानता और सामाजिक बहिष्कार को दूर करने के लिए एक आवश्यक कदम है।
महिला उद्यमिता को किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। महिला उद्यमी न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाती हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ाती है। भारतीय समाज में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक मोर्चों पर बदलाव लाने की जरूरत है। भारत में महिला उद्यमिता रोजगार का एक बड़ा स्रोत हो सकती है। उदारवादी नारीवादी सैद्धांतिक लेंस के माध्यम से देखा जाए तो हम देख सकते हैं कि भारत में सफल महिला उद्यमिता के लिए कुछ आधार मौजूद हैं, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया गया है। समाज का अधिकांश हिस्सा महिलाओं के काम करने और अपनी स्वतंत्रता हासिल करने के अधिकारों को मान्यता नहीं देता है, और ये दृष्टिकोण बहुत गहरे हैं। महिला उद्यमियों की क्षमता को मज़बूत करना भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में सकारात्मक बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन यह केवल व्यापक सामाजिक सुधारों के हिस्से के रूप में ही संभव हो सकता है।